अगली मुलाकात के इंतजार में
अगली मुलाकात के इंतजार में जो कहानी एक मुलाकात ऐसी भी से शुरू हुई थी। अब वह नया और अलग मोड़ ले चुकी थी। . अब नाम बदलने के साथ साथ भाव भी बदल चूका था। परिवर्तन प्रकर्ति का नियम है तो वो अब हो चूका था। और होता भी क्यूँ न वैसे भी जीवन में कुछ भी तो स्थाई जैसा नहीं होता है। हमें लगता जरूर है लेकिन असल में तो स्थाई सिर्फ अस्थाई का विलोम ही होता है। अगली मुलाकात के इंतजार में अब शीर्षक एक मुलाकात ऐसी भी पूरी तरह बदल चूका था। और नया शीर्षक अगली मुलाकात का इंतजार हो चूका था। अब अगली मुलकात थोड़ी मुश्किल सी लगी थी। क्यूंकि पिछली बार सीमाएं ताक़ पर जो रखी थी। हालाँकि सीमाएं तो दोनों ने अपनी मर्जी से और सहजता से लांघी थी। लेकिन जब मुलाकात के बात समझ आया कि क्यों ही लांघी थी। असल में आप कुछ और ही सोच रहे हो ये असर सीमाएं लांघने से कहीं ज्यादा किसी और वजह से था। आखिरी मुलाकात के बाद दोनों ने महसूस किया कि ऐसे दूर होकर जीना कितना मुश्किल था। अगली मुलाकात के इंतजार में तो फिर अगली मुलाकात से पहले यें रुकावटें आना लाजमी भी थी। दोनों ही इस दुःख से पीड़ित थे लेकिन मन ही मन मुलाकात की हांमी