वक्त का भी बड़ा अजीब किस्सा है।
बैठे बैठे यूं ही कुछ लिख दिया जरा टिप्पणी करना कैसा क्या है।
जिनके पास खाली वक्त पड़ा है वें सोचते हैं काटूं कैसे।
यह भी सच है कि उनके पास कोई काम नहीं है तो कटेगा भी कैसे।।
लेकिन जरा उनकी भी तो सोचो जो कहते हैं वक्त मिलता नहीं कोई काम करूं कैसे।।
वे अपने कामों में बिजी ही इतने रहते हैं वक्त मिले भी तो कैसे ।।
वक्त का भी बड़ा अजीब किस्सा है...
खैर वक्त खुद तो एक ही है लेकिन दोनों के किरदार अलग हैं।।
और वे दोनों ही वक्त को लेकर परेशान हैं क्योंकि दोनों का नजरिया अलग है।।
वक्त को तो शिकायत दोनों से ही नहीं है।
लेकिन बिचारे वक्त की किस्मत तो देखो कि दोनों को ही शिकायत वक्त से है।।
वक्त का भी बड़ा अजीब किस्सा है...
और खास बात तो देखो तीनों ही अनवरत चले जा रहे हैं।
ना वक्त रुक रहा है ना काम रुक रहा है और निठल्ले लोग वक्त काट भी रहें हैं।।
वक्त का भी बड़ा अजीब किस्सा है।
सुभाष फौजी
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