अगली मुलाकात के इंतजार में

अगली मुलाकात के इंतजार में 


 जो कहानी एक मुलाकात ऐसी भी से शुरू हुई थी। 

अब वह नया और अलग मोड़ ले चुकी थी। .


अब नाम बदलने के साथ साथ भाव भी बदल चूका था। 

परिवर्तन प्रकर्ति का नियम है तो वो अब हो चूका था। 


और होता भी क्यूँ न वैसे भी जीवन में कुछ भी तो स्थाई जैसा नहीं होता है। 

हमें लगता जरूर है लेकिन असल में तो स्थाई सिर्फ अस्थाई का विलोम ही होता है। 


अगली मुलाकात के इंतजार में 


अब शीर्षक एक मुलाकात ऐसी भी पूरी तरह बदल चूका था। 

और नया शीर्षक अगली मुलाकात का इंतजार हो चूका था। 


अब अगली मुलकात थोड़ी मुश्किल सी लगी थी। 

क्यूंकि पिछली बार सीमाएं ताक़ पर जो रखी थी।


हालाँकि सीमाएं तो दोनों ने अपनी मर्जी से और सहजता से लांघी थी। 

लेकिन जब मुलाकात के बात समझ आया कि क्यों ही लांघी थी।


असल  में आप कुछ और ही सोच रहे हो ये असर सीमाएं लांघने से कहीं ज्यादा किसी और वजह से था। 

आखिरी मुलाकात के बाद दोनों ने महसूस किया कि ऐसे दूर होकर जीना कितना मुश्किल था। 


अगली मुलाकात के इंतजार में 


तो फिर अगली मुलाकात से पहले यें रुकावटें आना लाजमी भी थी। 

दोनों ही इस दुःख से पीड़ित थे लेकिन मन ही मन मुलाकात की हांमी भी थी। 


इस आखिर मुलाकात ने दोनों को इतना तो समझा ही दिया था। 

भले पराये बनने का नाटक कर लो दिल ने तो अपना बना ही दिया था। . 


इस आखिरी मुलाकात को कितने ही शब्दों से सजा लो कम ही थे। 

क्यूंकि दोनों सिर्फ मिले नहीं एक दूसरे को सहज समझे थे। . 


अब कल्पनाओं को विराम लगने लगा था। 

अब जो दिल कभी अमीर था गरीब होने लगा था। 


गरीबी कोई भावनाओं की नहीं  थी 

लेकिन क्या लिखूं शब्दों की कमी थी। 


अगली मुलाकात के इंतजार में 


अब वक्त शहर छोड़ने का भी था। 

लेकिन दर्द तो महबूब से बिछड़ने का था। 


जाने क्यूँ अब एक दूसरे को समझा नहीं पा रहे थे। 

दूर थे तो मिलना चाह रहे थे और पास होके मिल नहीं पा रहे थे। 


असल में दोनों ही  इस मुलाकात को लेकर कुछ खास ठीक से समझ नहीं पा रहे थे। 

कि ये अगली मुलाकात कहीं आखिरी न हो जाये इसलिए भी दोनों डर रहे थे। . 


अगली मुलाकात के इंतजार में 

✍️✍️सुभाष फौजी✍️✍️


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