एक साथी ऐसा जो अपना सा।
एक साथी ऐसा जो अपना सा।
यूं तो सबकी पूरी जिंदगी में हर किस्सा ही, अपने आप में अजीब होता है।।
लेकिन ये किस्सा तो पूरी जिंदगी में संभवतः, एक ही खुशनसीब प्रतीत होता है।। 1।।
वैसे तो हमने भी सुना था की अनजानी राहों में, अपने से लोगों से मुलाकात होती है।।
लेकिन ये न पता था कि एक अनजान से हुई, इतनी भी खास मुलाकात होती है।। 2।।
अब थोड़ा किस्सा सिर्फ मेरे अकेले का ही सुन लो।।
कहानी तो दोनों की है लेकिन फिर भी अकेले का सुन लो ।। 3।।
एक चेहरा जो हर ढंग से अलग और अनजान था, इसलिए कोई जुड़ाव न था ।।
था तो अनजान फिर भी रोज सामने से गुजरता तो, सच में ही कुछ तो लगाव था।। 4।।
एक साथी ऐसा जो अपना सा
हालाँकि मन ही मन रोज सोचता कितना स्वाभिमानी है।।
हाँ स्वाभिमानी, उस लाचार राह में भी इतना स्वाभिमानी है।। 5।।
खैर अभी भी सच में तो अनजान ही थे, अपनापन कहीं प्रमस्तिष्क में होगा।।
सामने से तो हमारे लिए आज भी अनजान था, जैसे कोई राहगीर होगा।। 6।।
लगता था कि ये सिर्फ किताबों में ही होता है, कि राहगीर भी कभी अपना होता है।।
हालांकि फिर वो ही बात संयोगों से मेरा पुराना नाता जो है, तो सच भी होता है ।। 7।।
हफ्तों तक सामने से गुजरा तो, बेशक चेहरा तो पहले से ही जाना पहचाना था।।
अब किसी बहाने हम भी पहुंचे तो पता चला, वो अनजाना सख्श भी वहीं था।। 8।।
एक साथी ऐसा जो अपना सा
अब सब कुछ ही बता दूंगा, तो कवि की कल्पना न रहेगी।।
पढोगे तो सारगर्भित पद्य न होकर, सच्ची जीवनी लगेगी।। 9।।
फिर धीरे धीरे समय के साथ साथ, अब अनजाने से जान पहचान हो चुकी थी।।
दोनों की नजदीकियां बढ़ी क्यूंकि, बहुत सारी समानताएं भी साझा हो चुकी थी।। 10।।
वैसे सच में ही यकीं नहीं होता था कि, आखिर इतना सब ऐसे कैसे हो सकता है।।
दोनों एकदम अनजान लोग जो कभी न मिलें हो, फिर भी समान हो सकता है।। 11।।
असल में दोनों इतने सहज और समझदार थे।।
अभी भी ऐसा लगता जैसे बिलकुल अनजान थे।। 12।।
एक साथी ऐसा जो अपना सा
फिर कुछ सार्वजनिक मुलाकातें, किसी न किसी बहाने से होने लगी थी।।
तो समझ आने लगा कि दोनों की, बहुत सी आदतें समान ही थी।। 13।।
तो अब इतना तो स्वीकारा कि चाहे जो भी है, लेकिन अनजान तो नहीं है।।
हालाँकि अभी भी लड़ाई इसी बात की थी दोनों में, कि समान तो नहीं है।। 14।।
लेकिन ये पता चल चूका था कि, अब ये सिर्फ एक बात करने मात्र का बहाना था।।
लेकिन सच में तो दोनों में, बहुत कुछ बिल्कुल हूबहू एक सामान और सुहाना था।। 15।।
यहाँ सुहाना इसलिए भी कहा गया है, क्यूंकि अब समझ भी आ गया है।।
जो चेहरा सामने से गुजरा करता था, अब तो कई बार साथ भी गया है।। 16।।
एक साथी ऐसा जो अपना सा
अब तो कई बार सार्वजनिक रूप से सपने भी साझा हुए थे।।
सिर्फ भविष्य के सपने ही नहीं, भुत की घटनाक्रम भी समान जैसे ही थे ।। 17।।
अब तो इतना सब कुछ साझा हुआ, कि ऐसे लगता था एक ही पन्ना है ।।
बस दोनों तरफ अलग अलग तरीके से जरूर लिखा है, लेकिन एक ही पन्ना है।। 18।।
बस बाते एक जैसी ही लिखी हुई है।।
पेज नंबर ही अलग अलग लिखी हुई है।। 19।।
अब साथ ऐसे रहते जैसे एक दूसरे के बीच कुछ भी नहीं है।।
था सच में कुछ नहीं लेकिन दोनों, शायद एक दूसरे को अच्छे लगते है।। 20।।
एक साथी ऐसा जो अपना सा
तभी तो नोक झोंक के साथ लड़ाई भी होती, लेकिन जैसे कोई नाराजी ही नहीं।।
हाँ परिपक़्व दोनों ही इतने की दोनों तरफ ही, समझदारी की कोई कमी नहीं।। 21।।
अब कुछ बातें आगे बढ़ने लगी एक दूसरे का, मन ही मन ख्याल रखा गया।।
दोनों अलग अलग रहें लेकिन फिर भी, भावनाओं का सम्मान किया गया।। 22।।
डांट डपट तक पड़ने लगी दोनों के बीच में।।
लेकिन ऐसे जैसे सुधार चाहते हों एक दूसरे में।। 23।।
लड़ाइयां वहीँ होती है जहाँ, एक दूसरे के लिए अगाढ़ अपनापन होता है।।
दोनों को वैसे कोई शिकायत नहीं, पर मेरा दिल यह सब बताने की सोचता है।। 24।।
एक साथी ऐसा जो अपना सा
हो न हो कि हर हाल में खुश रहना सीखे, चाहे कोई बाधा हो जीवन में।।
लड़ जाये बाधा से और बस, सुकून, ख़ुशी और खुशहाली हो जीवन में।। 25।।
न इजहार की जरूरत थी न इकरार की जरूरत थी।।
शायद जितना मैं दिल से करीब था, उतनी उनके भी मन मुरीद थी।। 26।।
लेकिन फिर भी इजहार हुआ अलग अंदाज में, अब दोनों ही इतने समान हैं।।
और माने भी क्यों न कैसे दो अलग अलग, उम्र और जगह के लोग इतने समान हैं।। 27।।
खैर एक शर्त पर अब इजहार हुआ।।
हमेशा खुद को खुश रखोगे ऐसा इकरार हुआ।। 28।।
एक साथी ऐसा जो अपना सा
अब एक अलग सी ख़ुशी और अलग सी मंद मुस्कान की अनुभूति थी।।
जो अनजान कभी सामने से गुजरा, अब मन ही मन एक दूसरे की सहमति थी।। 29।।
अब यहीं विराम दूंगा नए शीर्षक के साथ मिलेंगे।।
अपनापन हो ही चूका था तो शीर्षक भी बदलेंगे।। 30।।
✍️✍️अमीर दिल साथियों का साथी सुभाष फौजी ✍️✍️
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